हर साल ओडिशा के पुरी शहर में आस्था और श्रद्धा का विशाल संगम देखने को मिलता है, जब लाखों भक्त भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथ यात्रा में शामिल होते हैं। यह भव्य धार्मिक पर्व भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है। तीन विशाल और सुंदर ढंग से सजाए गए रथों में इन देवताओं को विराजमान किया जाता है, और हज़ारों श्रद्धालु इन रथों को रस्सियों से खींचते हैं। यह दृश्य भक्तों की भक्ति, प्रेम और ऊर्जा का एक जीवंत प्रतीक बन जाता है। चारों ओर गूंजते शंख, ढोल, मंजीरों और हरि नाम संकीर्तन की ध्वनि इस माहौल को और भी पवित्र बना देती है।

यदि आप एक भक्त, फोटोग्राफर या सांस्कृतिक प्रेमी हैं, तो Jagannath Rath Yatra Image न केवल आपके लिए एक यादगार दृश्य हो सकती है, बल्कि यह भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाती है। ऐसी छवियां समय के साथ एक अमूल्य स्मृति बन जाती हैं, जो भक्तिभाव, एकता और परंपरा को जीवंत रखती हैं।

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🛕 जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है?

जगन्नाथ रथ यात्रा भारत की सबसे प्राचीन और भव्य धार्मिक यात्राओं में से एक है, जिसे विशेष रूप से ओडिशा के पुरी शहर में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह उत्सव भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है। इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है — भगवान को उनके भक्तों के बीच लाना, ताकि वे सभी जातियों, वर्गों और समुदायों के लोग उनकी झलक पा सकें।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह यात्रा उस समय की याद दिलाती है जब भगवान श्रीकृष्ण (जगन्नाथ) अपने भाई-बहन के साथ अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) गए थे। इस यात्रा में तीनों भगवानों को भव्य रथों में बैठाकर श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है, जहां वे आठ दिन तक निवास करते हैं। फिर उन्हें पुनः रथों द्वारा श्रीमंदिर लाया जाता है — जिसे बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।

इस आयोजन का एक और उद्देश्य है — सबके लिए भगवान के दर्शन को सुलभ बनाना। आमतौर पर भगवान के दर्शन मंदिर के गर्भगृह में होते हैं, जहां हर कोई नहीं जा सकता। लेकिन रथ यात्रा में भगवान स्वयं नगर भ्रमण पर निकलते हैं, ताकि हर वर्ग का व्यक्ति उन्हें देख सके और आशीर्वाद पा सके।

इस रथ यात्रा के दौरान विशाल जनसमूह एकत्र होता है, रथ को खींचने के लिए भक्तगण जुटते हैं और ऐसा माना जाता है कि स्वयं भगवान को रथ खींचना अत्यंत पुण्यदायक कार्य है। इस प्रकार, यह पर्व भक्ति, समानता, संस्कृति और समाजिक एकता का प्रतीक बन चुका है।

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